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Tuesday 9 May 2017

उड़ने दो, ना बांधो




उड़ने दो, ना बांधो
पैरों में मेरे और बेड़ियाँ ना डालो
खोखले समाज की इन बेमानी ज़ंजीरो में
बन्दिशो में और इन झूठी शानो की लकीरो में
मुझको तुम और अब ना जकड़ो
उड़ने दो, ना बांधो ।

ख्वाबों के जहाँ में
ज़रा पंख फैलाने दो
ख्वाहिशों के आसमाँ में
एक चक्कर तो लगा आने दो
छोटी सोच की कोठरी में
अब और ना मुझको कैद करो
उड़ने दो ना बांधो ।

लड़की हूँ कोई कठपुतली नही
ये मेरी साँसें नक्ली नही
मेरी जीवन की डोर को अब और ना कसो
मेरा भविष्य, मेरी सीमाएँ तुम तय ना करो
चलना कैसे है और कितनी दूर जाना है
ये अब तुमको ना मुझे बताना है
उड़ने दो, ना बांधो


क्यों आंख दिखाते हो
मुँह जो खोलूँ तो भौऐं चढ़ाते हो
हर बार मेरी आवाज़ दबाते हो
और चुप रहने की नसीहत दे जाते हो

अब और ना चुप रहूँगी
यूँ खामोशी से सब कुछ ना सँहूगी
अब तुम ना मुझको रोक पाओगे
बेबक निडर मै अपनी उड़ान भरुँगी
और तुम बस देखते रह जाओगे ।।



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