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Thursday 23 August 2018

लिखती हूँ...



हर्फों के रेशमी धागें बुनकर
तश्ते-ए-फ़लक पर जज़्बात लिखती हूँ

बिखरे लम्हों की तुरपन सी कर
दामन-ए-आसमां में सजा हर ख़यालात लिखती हूँ

ये कौन है हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
इंसान हूँ इंसानियत को सबकी ज़ात लिखती हूँ 

फींकी है जिसके आगे हर नेमत
माँ की दुआ को गुलशन-ए-ज़ीस्त की वो सौगात लिखती हूँ

भीगा बदन जिस खुमार में रूह की हद तलक
दिल-नगर में तेरे इश्क़ की वो बरसात लिखती हूँ

सजा कर अपने अरमानों की डोली
कलम औ कागज़ से यादों की बरात लिखती हूँ  

@vibespositiveonly

Monday 16 April 2018

हकीक़त के छाले

image-credit~Google


मुझे लगते ख़्वाबों के ये अफ़साने है प्यारे बड़े
असल में तो दुखते है हकीक़त के छाले बड़े

किसे कहूँ यार अपना,नहीं कोई अब दिलदार अपना
दिल को मेरे खलते हैं अपनों के ये दिखावे बड़े

लम्हा है ख़ुशी का जी भर के मुस्कुराने दो इन्हें
मेरी आँखों ने सैलाब ग़मों के है बाअदब संभाले बड़े

ऊँचें मकानों में ही नहीं रहा करते अमीर सभी
मिट्टी के इन महलों में भी बसते है दिलवाले बड़े

रोशनी का ज़रिया इक ये आफ़्ताब ही तो नहीं
चराग़ उम्मीदों के भी करते हैं जहां में उजाले बड़े

शिवानी मौर्य
©vibespositiveonly

Friday 13 April 2018

एक तलाश "खुद" की


इक सफर 
ऐसा भी तय हो
मंज़िल जिसकी तुम,
तुम ही रहगुज़र हो
खुद से भटक कर 
जहाँ पहुँच खुद तक जाना हो 
खोकर खुद को
खुद ही को पाना हो
समाज ये खोखला
खोखलें इसके कायदे है
झूठी है हर रीत
झूठे इसके सब वायदे है 
तो उतार फेंको 
ढकोसलों का ये चोला
निकल पड़ो घर से 
लेकर अपने अस्तित्व का झोला
ये बेड़ियाँ तुमको जकड़ेंगी
आगे बढ़कर पकड़ेंगी
लहरें रुख़ तुम्हारा मोड़ेंगी
संभव है तुमको झकझोरेंगी
कश्ती अपनी तुमको 
जो पार है लगाना 
तो बन पतवार साहिल तक
खुद को है पहुँचाना 
उजाले की प्यास में कब तक 
जुगनू के पीछे भागा जाए
क्यूं न अपनी हथेली 
पर ही सूरज उगाया जाए
अंतर्मन के नभ में
बेधड़क उड़ जाना हो
ऐसा भी जीवन में 
पल कोई मनमाना हो
इक बाज़ी 
खेल में ऐसी भी हो
हराकर खुद को
जीत "खुद" को जाना हो||
©vibespositiveonly

Wednesday 4 April 2018

तुम ठान लो


Image credit-google


हो जाये बौने
ये विघ्नों के पर्वत भी
कद हौंसलो का
कुछ यूँ तुम बढ़ा लो
आँगन में तुम्हारे भी
आयेगा भोर का उजियारा
बस एक सूरज आशा वाला
चौखट पे तुम टांग लो
ये अक्षमताएं तुम्हारी
देहिक है,सीमित है
अंतर में छिपी
अपार योग्यता को
तुम पहचान लो
चूर-चूर हुई विराट चट्टानें भी
जल धारा के नित बहाव से
यत्न प्रयन्त किये बिना
आसानी से फिर तुम
क्यूँ हार मान लो
करके अपने इरादें
मज़बूत दे दो
असफलता को मात
होगी तुम्हारी जीत
जो तुम ठान लो ||

Wednesday 14 February 2018

इज़हार



हमने तो कई दफे किया हाल-ए-दिल बयाँ 
है ग़र इश्क़ तम्हें भी,तो इज़हार करना चाहिए

हमने तो अक्सर ही तेरी राह तकी पलके बिछाकर
किसी रोज़ तुम्हें भी हमारा इंतिज़ार करना चाहिए

हम तो रंग गये है तेरी उल्फ़त में सुर्ख गुलाबी
रंग-ए-मोहब्बत का तुम पर भी ख़ुमार चढ़ना चाहिए

हमें तो लग गया है इश्क़ का ये मर्ज़ बुरा
मर्ज़-ए-इश्क़ में तुमको भी बीमार दिखना चाहिए

हमने तो लुटाया सुकून इस दिल का हसंकर
दर पर तेरे भी बे-क़रारी का ये बाज़ार लगना चाहिए