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Thursday, 23 August 2018

लिखती हूँ...



हर्फों के रेशमी धागें बुनकर
तश्ते-ए-फ़लक पर जज़्बात लिखती हूँ

बिखरे लम्हों की तुरपन सी कर
दामन-ए-आसमां में सजा हर ख़यालात लिखती हूँ

ये कौन है हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
इंसान हूँ इंसानियत को सबकी ज़ात लिखती हूँ 

फींकी है जिसके आगे हर नेमत
माँ की दुआ को गुलशन-ए-ज़ीस्त की वो सौगात लिखती हूँ

भीगा बदन जिस खुमार में रूह की हद तलक
दिल-नगर में तेरे इश्क़ की वो बरसात लिखती हूँ

सजा कर अपने अरमानों की डोली
कलम औ कागज़ से यादों की बरात लिखती हूँ  

@vibespositiveonly