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Thursday 23 August 2018

लिखती हूँ...



हर्फों के रेशमी धागें बुनकर
तश्ते-ए-फ़लक पर जज़्बात लिखती हूँ

बिखरे लम्हों की तुरपन सी कर
दामन-ए-आसमां में सजा हर ख़यालात लिखती हूँ

ये कौन है हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
इंसान हूँ इंसानियत को सबकी ज़ात लिखती हूँ 

फींकी है जिसके आगे हर नेमत
माँ की दुआ को गुलशन-ए-ज़ीस्त की वो सौगात लिखती हूँ

भीगा बदन जिस खुमार में रूह की हद तलक
दिल-नगर में तेरे इश्क़ की वो बरसात लिखती हूँ

सजा कर अपने अरमानों की डोली
कलम औ कागज़ से यादों की बरात लिखती हूँ  

@vibespositiveonly

14 comments:

  1. उम्दा ग़ज़ल...
    सादर....

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    1. बहुत आभार आपका सर जी :)

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  2. वाहह!!बहुत खूबसूरत गज़ल।

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  3. अच्छा है
    बहुत बढ़िया

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  4. बहुत सुन्दर रचना .....लाजवाब 👌👌👌

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  5. बेहतरीन...
    स्वागत है...
    सादर

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  6. ये यादों की भारत लिखनी ज़रूरी है ...
    मन को सुकून देता है जज़्बातों को लिखना ...
    सुंदर रचना है ...

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  7. निमंत्रण विशेष :

    हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।

    यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !

    'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  8. सूंदर प्रयास बहन!👌

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