जो सो गया है
उसे जगाने मैं फिर निकली हूँ
जो रूठ गया है
उसे मनाने मैं फिर निकली हूँ
जो बिख़र गया है
उसे सजाने मैं फिर निकली हूँ
जो छलक गया है
उसे छिपाने मैं फिर निकली हूँ
जो बहक गया है
उसे घर लाने मैं फिर निकली हूँ
जो खो गया है
उसे तलाशने मैं फिर निकली हूँ
जो सहम गया है
उसे ढाँढस बँधाने मैं फिर निकली हूँ
भीतर जो मृत-सा हो गया है
उसे जीने के कायदे बतलाने मैं फिर निकली हूँ
जलाकर उमंग का नया दीप
अंतर्मन का अँधेरा मिटाने मैं फिर निकली हूँ
हौंसलों को मन में लिए
ज़िन्दगी को आज़माने मैं फिर निकली हूँ
ख़ामोश हो गयी इस कलम को
एहसासों की जुबां देने मैं एक बार फिर निकली हूँ!