image-credit~Google |
मुझे लगते ख़्वाबों के ये अफ़साने है प्यारे बड़े
असल में तो दुखते है हकीक़त के छाले बड़े
किसे कहूँ यार अपना,नहीं कोई अब दिलदार अपना
दिल को मेरे खलते हैं अपनों के ये दिखावे बड़े
लम्हा है ख़ुशी का जी भर के मुस्कुराने दो इन्हें
मेरी आँखों ने सैलाब ग़मों के है बाअदब संभाले बड़े
ऊँचें मकानों में ही नहीं रहा करते अमीर सभी
मिट्टी के इन महलों में भी बसते है दिलवाले बड़े
रोशनी का ज़रिया इक ये आफ़्ताब ही तो नहीं
चराग़ उम्मीदों के भी करते हैं जहां में उजाले बड़े
शिवानी मौर्य
©vibespositiveonly