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Wednesday, 4 April 2018

तुम ठान लो


Image credit-google


हो जाये बौने
ये विघ्नों के पर्वत भी
कद हौंसलो का
कुछ यूँ तुम बढ़ा लो
आँगन में तुम्हारे भी
आयेगा भोर का उजियारा
बस एक सूरज आशा वाला
चौखट पे तुम टांग लो
ये अक्षमताएं तुम्हारी
देहिक है,सीमित है
अंतर में छिपी
अपार योग्यता को
तुम पहचान लो
चूर-चूर हुई विराट चट्टानें भी
जल धारा के नित बहाव से
यत्न प्रयन्त किये बिना
आसानी से फिर तुम
क्यूँ हार मान लो
करके अपने इरादें
मज़बूत दे दो
असफलता को मात
होगी तुम्हारी जीत
जो तुम ठान लो ||

8 comments:

  1. सही कहा है ...
    मन में ठान लो कुछ भी मुश्किल नहीं है ...
    सुन्दर रचना ...

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  2. Very beautifully written. There's nothing that lifts a spirit more than a poem with a positive message.

    All the best for the A to Z Challenge. Do drop by mine.

    Scripted In Sanity

    Cheers,
    CRD

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एक प्रत्याशी, एक सीट, एक बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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