Image credit-google |
हो जाये बौने
ये विघ्नों के पर्वत भी
कद हौंसलो का
कुछ यूँ तुम बढ़ा लो
आँगन में तुम्हारे भी
आयेगा भोर का उजियारा
बस एक सूरज आशा वाला
चौखट पे तुम टांग लो
ये अक्षमताएं तुम्हारी
देहिक है,सीमित है
अंतर में छिपी
अपार योग्यता को
चूर-चूर हुई विराट चट्टानें भी
जल धारा के नित बहाव से
यत्न प्रयन्त किये बिना
आसानी से फिर तुम
क्यूँ हार मान लो
करके अपने इरादें
मज़बूत दे दो
असफलता को मात
होगी तुम्हारी जीत
जो तुम ठान लो ||
बहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteउम्दा
ReplyDeleteसही कहा है ...
ReplyDeleteमन में ठान लो कुछ भी मुश्किल नहीं है ...
सुन्दर रचना ...
Very beautifully written. There's nothing that lifts a spirit more than a poem with a positive message.
ReplyDeleteAll the best for the A to Z Challenge. Do drop by mine.
Scripted In Sanity
Cheers,
CRD
thanku for dropping by @CRD
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एक प्रत्याशी, एक सीट, एक बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteAbhari hun apki..
DeleteAbhari hun apki..
Delete