मैं तो नन्हा पौधा थी,तुमने सींचकर मुझे विराट वृक्ष बना दिया
मैं तो अमूल्य कोयला थी ,तुमने तराशकर मुझे बहुमूल्य हीरा बना दिया
मैं तो दिशाहीन रोशनी थी,तुमने खुद जलकर मुझे आफ़ताब बना दिया
मैं तो फर्श पर बिखरा मोती थी,तुमने पिरोकर मुझे माला बना दिया
मैं तो अबोध अनभिज्ञ थी,तुमने परखकर मुझे स्वयं से मिला दिया
मैं तो अज्ञानी लक्ष्यहीन थी,तुमने हाँथ थामकर मुझे गंतव्य से मिला दिया
मैं तो हांड मांस का पुतला थी, तुमने परिश्रमकर मुझे मानव बना दिया||
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