माना अँधेरा घना है पसरा हर ओर
पर आस का चमकीला सितारा
मैं इसमें ओझल होने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|
माना वीरान है दिल की ज़मीं
पर बीज तमन्ना का उगाये बगैर
मैं इसे बंजर होने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|
माना पाँव में है छाले बड़े
पर बीच डगर में रूककर
मैं इन्हें विश्राम करने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|
माना पंख होंसलों के है पस्त
पर क्षितिज तक उड़ान भरे बगैर
मैं इन्हें थकने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|
माना ख़वाब है बड़े महंगे इस शहर में
पर इन सपनीली आँखों को
मैं गरीब होने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|
माना साहस है टुकड़ो में छिटका पड़ा
पर किसी सस्ते कांच की भांति
मैं इसे बिखर जाने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|
गिरकर उठने का,खोकर पाने का
उजड़ कर बसने का ये सिलसिला टूटने कैसे दूँ
हाँथ मेरे दामन से तुम्हारा छूटने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ||
Ⓒvibespositiveonly
Wow ..So much positivity!!
ReplyDeleteशुक्रिया जनाब :)
Deleteबहुत ख़ूब ... जो उम्मीद का सबब बैन के आया है वो नाउम्मीद कैसे होने देगा किसी को ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteतहदिल से आपको धन्यवाद् दूंगी..ऐसे ही होंसला बढ़ाते रहे हमारा
Deleteवाह! खूबसूरत रचना। आशा ही जीवन है इस ध्येय वाक्य को रचना का केंद्रीय भाव बनाकर आपने बहुत खूबसूरती से भावों को उकेरा है। प्रेरक मनमोहक अभिव्यक्ति। बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteशुक्रिया इतने अनमोल वचनों के लिए..:)
Deleteमाना अँधेरा घना है पसरा हर ओर
ReplyDeleteपर आस का चमकीला सितारा
मैं इसमें ओझल होने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|
बहुत ही सुंदर कविता,मनोहारी प्रकटीकरण....
बहुत आभार आपका सर:)
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