बहुत कुछ खोना पड़ता है
कुछ थोड़ा-सा पाने के लिए
तिनका-तिनका संजोना पड़ता है
यहाँ आशियां बनाने के लिए..
खुद ही मरहम लगाना पड़ता है
दर्द के शरारों को सुखाने के लिए
एक-एक हसीं का हिसाब देना पड़ता है
यहाँ रत्ती भर खिलखिलाने के लिए..
गिरेबां को सदाक़त से सजाना पड़ता है
अपने किरदार को महकाने के लिए
काँटों के बीच पलना पड़ता है
यहाँ गुलाब-सा खिल जाने के लिए..
सूर्य की तरह खुद को जलाना पड़ता है
धुप अपने आँगन में लाने के लिए
आँख हो भरी फिर भी मुस्कुराना पड़ता है
यहाँ ग़मों को शिकस्त का मज़ा चखाने के लिए..
©vibespositiveonly

बहुत खूब ... स्वयं जले बिना रौशनी नहीं मिल पाती ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना है ...
तहदिल से आभारी हूँ आपकी..सादर
ReplyDeleteBhut hi achhi rachna
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना
ReplyDeleteबहुत खूब
बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteकुछ पाना है तो कुछ खोना पड़ता है...
वाह!!!
बहुत खूबसूरत रचना।वाह!!! बहुत खूब
ReplyDelete