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Thursday, 28 December 2017

ऐ काश!!






ऐ परिंदे काश मैं तुझ-सी होती 
तोड़ सब बंदिशें,बेपरवाही से पंख लेती पसार
नील गगन में,मस्त पवन संग उड़ जाती 
कहीं दूर फलक में होकर बादलों पर सवार||

ऐ समुन्दर काश मैं तुझ-सी होती 
क्षितिज होता मेरा भी अम्बर के पार
अडिग,अविचल मैं अनवरत बहती जाती  
समेट हर व्यथा खुद में करती दृढ़ता का विस्तार||

ऐ कलम काश मैं तुझ-सी होती
सच ही होता मेरे हर अक्षर का आधार
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ सुन्दर एक कविता लिखती
या ख़ामोशी से करती कुरीतियों पर प्रहार||

ऐ पुष्प काश मैं तुझ-सी होती
निश्छल,सुन्दर,सहज होता मेरा भी संसार
सबके मन को प्रेम की सुगंध से महकाती 
पतझड़ में भी खिलाती उम्मीदों की बहार||

ऐ दीप्ती काश मैं तुझ-सी होती 
उमंगों की रोशनी का होता मेरा व्यापार
कर्मपथ पर साहस की ज्योत जलाती
और करती अंधकार के सीने पर अनगिनत वार||
Ⓒvibespositiveonly



Wednesday, 20 December 2017

जिंदगी है जिंदादिली के लिए..😊




बहुत कुछ खोना पड़ता है 
कुछ थोड़ा-सा पाने के लिए
तिनका-तिनका संजोना पड़ता है 
यहाँ आशियां बनाने के लिए..

खुद ही मरहम लगाना पड़ता है 
दर्द के शरारों को सुखाने के लिए
एक-एक हसीं का हिसाब देना पड़ता है 
यहाँ रत्ती भर खिलखिलाने के लिए..

गिरेबां को सदाक़त से सजाना पड़ता है 
अपने किरदार को महकाने के लिए
काँटों के बीच पलना पड़ता है 
यहाँ गुलाब-सा खिल जाने के लिए.. 

सूर्य की तरह खुद को जलाना पड़ता है 
धुप अपने आँगन में लाने के लिए 
आँख हो भरी फिर भी मुस्कुराना पड़ता है 
यहाँ ग़मों को शिकस्त का मज़ा चखाने के लिए..

©vibespositiveonly

                                  

Saturday, 16 December 2017

मैं उम्मीद हूँ



माना अँधेरा घना है पसरा हर ओर
पर आस का चमकीला सितारा
मैं इसमें ओझल होने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|

माना वीरान है दिल की ज़मीं
पर बीज तमन्ना का उगाये बगैर
मैं इसे बंजर होने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|

माना पाँव में है छाले बड़े
पर बीच डगर में रूककर
मैं इन्हें विश्राम करने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|

माना पंख होंसलों के है पस्त
पर क्षितिज तक उड़ान भरे बगैर
मैं इन्हें थकने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|

माना ख़वाब है बड़े महंगे इस शहर में
पर इन सपनीली आँखों को
मैं गरीब होने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|

माना साहस है टुकड़ो में छिटका पड़ा
पर किसी सस्ते कांच की भांति
मैं इसे बिखर जाने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ|

गिरकर उठने का,खोकर पाने का
उजड़ कर बसने का ये सिलसिला टूटने कैसे दूँ
हाँथ मेरे दामन से तुम्हारा छूटने कैसे दूँ
मैं उम्मीद हूँ,तुम्हें ना उम्मीद होने कैसे दूँ||

Ⓒvibespositiveonly

Thursday, 14 December 2017

गुस्ताख़ नज़रें



ये नज़रें हैं गुस्ताख़
कहीं ये कोई हसीं भूल ऐ मेरे यार कर ना दें

तुम्हारी निगाहों से मिलकर
कहीं ये तुम्हें भी चाहत में बेक़रार कर ना दें

मेरे दिल का हाल है बुरा
कहीं ये बेपरवाही से इसका इज़हार कर ना दें

हम तो हो चुके है मोहब्बत में बर्बाद
कहीं ये तुम्हें भी जुनूने इश्क में बीमार कर ना दें

खुद तो जल रही है बनकर शमा
कहीं ये समझ तुम्हें परवाना राख़ मेरे यार कर ना दें|| 

©vibespositiveonly

Wednesday, 13 December 2017

उस शाम पहली दफ़ा..💖



उस शाम पहली दफ़ा..💖

जब तुम मेरे बिलकुल करीब बैठे थे
हाँ , देखा था मैंने
कुछ ख़्वाब सलोने तुम अपनी निगाहों में बुन रहे थे

तुम एक-एक कर दिल के राज़ खोल रहे थे
हाँ, देखा था मैंने
शब्दों से नहीं तुम आँखों से बोल रहे थे

तुम मेरी चंचलता को यूँ बेफिक्री से ताक रहे थे
हाँ, देखा था मैंने
जब मुझ संग तुम भी जैसे बच्चे बन रहे थे

तुम दिल के शजर के पत्तों पर मेरा नाम लिख रहे थे
हाँ,देखा था मैंने
जब जुनूने-ऐ-इश्क़ में बदनाम तुम सरेआम हो रहे थे

तुम मेरी मृगनयनी आँखों में खुद का अक्स तलाश रहे थे
हाँ,देखा था मैंने
जब इनमे डूब कर भी तुम पार लग रहे थे

तुम मेरी धड़कनों का शोर बड़ी ख़ामोशी से सुन रहे थे
हाँ, देखा था मैंने
जब इस शोर में भी तुम  सुकून-ऐ-राहत महसूस कर रहे थे

तुम ठण्ड से ठिठुरती उस शाम में गुनगुनी धूप से लग रहे थे
हाँ, देखा था ना तुमने
जब साँझ के सूर्य की भांति तुम मुझमे ढल रहे थे ||
Ⓒvibespositiveonly



Tuesday, 10 October 2017

दोस्ती



दोस्त तो बहुत मिले है
पर तुम सा यार कोई नही

रिश्ते अंगिनत मिले है
पर तुम सा बंधन कोई नही

मतलब के लोग बहुत मिले है
पर तुम सा  निस्वार्थी कोई नही

साथ निभाने वाले बहुत मिले है
पर तुम सा साथी कोई नही

दिल वाले बहुत मिले है
पर तुम सा दिलदार कोई नही

सुख की छावं साझा करने वाले बहुत मिले है
पर तुम सा दुख बाँटने वाला कोई नही

मुखौटो पर मुखैटे बहुत मिले है
पर तुम सा साफ़ दिल कोई नही

भीड़ मे अपने बहुत मिले है
पर तुम सा अपना कोई नही

दोस्ती की कसमे खाने वाले बहुत मिले है
पर तुम सा इसके मायने समझने वाला कोई नही

दोस्ती की मिसाले बहुत मिली है
पर तुम जैसी इसकी परिभाषा कोई नही....
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Tuesday, 26 September 2017

प्रेम

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मैं नहीं जानती थी प्रेम के रंग कैसे होते है
तुमसे मिलकर जाना प्रेम में इंद्रधनुष ऐसे होते है 

प्रेम में अधरों से किये  इज़हार कैसे होते है 
तुमसे मिलकर जाना आँखों ही आँखों में इक़रार ऐसे होते है 

प्रेम में  दो जिस्म एक जान कैसे होते है 
तुमसे मिलकर जाना एक रूह के दो ठिकाने ऐसे होते है 

प्रेम में कसमें वादों के सिलसिले कैसे होते है 
तुमसे मिलकर जाना बिन शर्तो में बंधे बंधन ऐसे होते है 

प्रेम में करवटों से भरे इंतज़ार के फ़साने कैसे होते है 
तुमसे मिलकर जाना चांदनी के धागों से बुने ख़्वाब ऐसे होते है

प्रेम में शमा परवाने के अफ़साने कैसे होते है 
तुमसे मिलकर जाना खुद से बेगाने,दीवाने ऐसे होते है 

प्रेम में 'मैं' और 'तुम' जाने 'हम' कैसे होते है 
तुमसे मिलकर जाना 'हम' में 'तुम', 'तुम' में 'हम' ऐसे होते है||

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Tuesday, 19 September 2017

एक चाहत



एक चाहत उसकी भी थी
रिमोट वाली कार की
पर लड़की हो तुम,
गुड़िया से खेलो
उसके जैसा स्वाभाव ले लो
ख़ामोशी से तुम सब सह लो

एक चाहत  उसकी भी थी
अंग्रेजी स्कूल जाने की
पर लड़की हो तुम,
हिंदी माध्यम में पढ़ो
ब्याह आराम से हो जाए
इतनी बस तुम शिक्षा ले लो

एक चाहत  उसकी भी थी
बल्ला थाम बड़ा एक खेल खेल जाने की
पर लड़की हो तुम,
हाथ में बेलन पकड़ो
रसोई को कोई खेल मत समझ लो
गोल रोटी तुम बनाना सीख लो

एक चाहत  उसकी भी थी
कुल का नाम जग में रोशन करने की
पर लड़की हो तुम,
दीपक बनने का प्रयास मत करो
बेटी धर्म को निष्ठा से निभा लो
पराये घर में सबकी तुम साख़ बचा लो

एक चाहत उसकी भी थी
काँधे से कान्धा मिलाकर चलने की
पर लड़की हो तुम,
अपनी सीमा को मत लांघो
गृहस्थी के व्रत को धारण कर लो
घर को चलाने की तुम आदत डाल लो

एक चाहत उसकी भी थी
अपनी हर ख्वाहिश को पूरा करने की
पर लड़की है वो ,
हसरतें रखने की वो हक़दार नहीं
वो तो जनम लेती है
सबकी इच्छा से जीने के लिए..


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Saturday, 16 September 2017

इंतज़ार



वो आँखें
जो रात-रात जग कर
तुमको  सुलाया करती थी
हाँ, उन सूनी, धीमी आँखों
को भी इंतज़ार है..

वो आलिंगन
जो अक्सर खुद में समेट कर
तुमको महफूज़ रखा करता  था
हाँ, उस कमज़ोर आलिंगन
को भी इंतज़ार है..

वो उँगलियाँ
जो थम कर नन्हे हाँथ
तुमको चलाया करती थी
हाँ,उन बेबस उँगलियों
को भी इंतज़ार है..

वो काला टीका
जो हर दफ़ा रक्षक बन
तुमको बुरी नज़रों से बचाया करता था
हाँ,उस सफ़ेद पड़ गये टीके
को भी इंतज़ार है..

वो निवाले
जो बस एक और,अच्छा ये आख़री
बोल तुमको भूख से ज्यादा खिलाया करती थी
हाँ,उन भूखे निवालों
को भी इंतज़ार है..

वो आशीर्वाद
जो किस्मत को भी पीछे छोड़
तुमको सफलता की सीढ़ी चढ़ाया करता था
हाँ,उस भूले बिसरे आशीष
को भी इंतज़ार है..

वो कंधें
जो बड़े शौक से
तुमको मेलों की सैर कराया करते थे
हाँ,उन थके कांधों
को भी इंतज़ार है..

वो लाड़
जो बेहिसाब बेमतलब ही
तुम पर लुट जाया करता था
हाँ,उस तनिक भी कम ना हुए लाड़
को भी इंतज़ार है..

वो डांट
जो हर गलती पर
तुमको सही-गलत का पाठ पढ़ाया करती थी
हाँ,उस ख़ामोश पड़ी डांट
को भी इंतज़ार है..

वो दिल
जो जानता है,तुम अब ना लौटोगे
फिर भी अनजान बन जाया करता है
हाँ,उस टूटे दिल
को भी इंतज़ार है..

वो वादा
जो कर गए थे
तुम लौट कर आने का
वापस संग घर ले जाने का
हाँ,अधूरे ही सही पर उस वादे
को आज भी इंतज़ार है
बेटा तुम्हारे लौट आने का...!

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Thursday, 14 September 2017

तुम्हें लिख दूँ ..💘

💖💖💖💖💖💖💖💖

मैं ग़र ढलती संध्या ,तो तुम्हे सुबह का सूरज लिख दूँ..
मैं ग़र गर्मी की तपिश,तो तुम्हें सावन की फुहार लिख दूँ ..
मैं ग़र धरा,तो तुम्हें नीला आकाश लिख दूँ..
मैं ग़र आगाज़ नया ,तो तुम्हें खूबसूरत अंजाम लिख दूँ..
मैं ग़र पंख बेबाक ,तो तुम्हें ऊँचा परवाज़ लिख दूँ..
मैं ग़र नदी इठलाती ,तो तुम्हें गहरा सागर लिख दूँ..
मैं ग़र फूल कोमल ,तो तुम्हें मस्त बहार लिख दूँ..
मैं ग़र रात अन्धयारी ,तो तुम्हें चंदा चकोरा लिख दूँ..
मैं ग़र हृदय अपार, तो तुम्हें धड़कन हर बार लिख दूँ..
मैं ग़र श्वांस जीवन की,तो तुम्हें प्राणों का सार लिख दूँ..
मैं ग़र तरंग सप्तरंगी,तो तुम्हें सुनहेरी उमंग लिख दूँ..
मैं ग़र ख्वाहिश अधूरी ,तो तुम्हें मुकम्मल ख्वाब लिख दूँ..
मैं ग़र शब्द निरर्थक ,तो तुम्हें अर्थ सार्थक लिख दूँ..
मैं ग़र बिखरे अल्फ़ाज़,तो तुम्हें मधुर कविता लिख दूँ..
मैं ग़र उलझन बेहिसाब ,तो तुम्हें सुकून लिख दूँ ..
मैं ग़र नैना सूने,तो तुम्हें कजरे की धार लिख दूँ..
मैं ग़र पाक इबादत ,तो तुम्हें रहमते खुदा लिख दूँ..
मैं ग़र तन मिट्टी का,तो तुम्हें अमर आत्मा लिख दूँ..

Tuesday, 5 September 2017

गुरु का आभार




मैं तो कच्ची माटी थी,तुमने तपाकर मुझे चिकना घड़ा बना दिया
मैं तो नन्हा पौधा थी,तुमने सींचकर मुझे विराट वृक्ष बना दिया
मैं तो अमूल्य कोयला थी ,तुमने तराशकर मुझे बहुमूल्य हीरा बना दिया
मैं तो दिशाहीन रोशनी थी,तुमने खुद जलकर मुझे आफ़ताब बना दिया
मैं तो फर्श पर बिखरा मोती थी,तुमने पिरोकर मुझे माला बना दिया
मैं तो अबोध अनभिज्ञ थी,तुमने परखकर मुझे स्वयं से  मिला दिया
मैं तो अज्ञानी लक्ष्यहीन थी,तुमने हाँथ थामकर मुझे गंतव्य से मिला दिया
मैं तो हांड मांस का पुतला थी, तुमने परिश्रमकर मुझे मानव बना दिया||

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Monday, 4 September 2017

हमेशा ये क्यूँ कहते रहे...





हमेशा ये क्यूँ कहते रहे...

बेटी सबका ख्याल रखना
कभी ये क्यूँ नहीं कहा
बेटी अपना भी ध्यान रखना..



बेटी सबको खुश रखना
कभी ये क्यूँ नहीं कहा
बेटी तुम भी खिलखिला कर हँसना..

बेटी सबकी इच्छाएं पूरी करना
कभी ये क्यूँ नहीं कहा
बेटी अपनी  चाहत कभी मत दबाना..

बेटी सबका आदर करना,मान करना
कभी ये क्यूँ नहीं कहा
बेटी अपना सम्मान सबसे आगे रखना..

बेटी रिश्तों की गरिमा के लिए चुप रह जाना
कभी ये क्यूँ नहीं कहा
बेटी अपनी  गरिमा के लिए आवाज़ ज़रुर उठाना..

बेटी रिश्ते की मर्यादा के लिए थोड़ा सह जाना
कभी ये क्यूँ नहीं कहा
बेटी तुम्हारी मर्यादा कोई रोंदे तो मत सहना..

बेटी हर दिन दूसरों के  लिए  साँस लेना
पर
एक दिन तू खुद के लिए भी  जीना...

©vibespositiveonly

Tuesday, 29 August 2017

मैं फिर निकली हूँ




जो सो गया है
उसे जगाने मैं फिर निकली हूँ

जो रूठ गया है
उसे मनाने मैं फिर निकली हूँ

जो बिख़र गया है
उसे सजाने मैं फिर निकली हूँ

जो छलक गया है
उसे छिपाने मैं फिर निकली हूँ

जो बहक गया है
उसे घर लाने मैं फिर निकली हूँ

जो खो गया है
उसे तलाशने मैं फिर निकली हूँ

जो सहम गया है
उसे ढाँढस बँधाने मैं फिर निकली हूँ

भीतर जो मृत-सा हो गया है
उसे जीने के कायदे बतलाने मैं फिर निकली हूँ

जलाकर उमंग का नया दीप
अंतर्मन का अँधेरा मिटाने मैं फिर निकली हूँ

हौंसलों को मन में लिए
ज़िन्दगी को आज़माने मैं फिर निकली हूँ

ख़ामोश हो गयी इस कलम को
एहसासों की जुबां देने मैं एक बार फिर निकली हूँ!

Saturday, 26 August 2017

कभी सोचती हूँ ..

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कभी सोचती हूँ..

क्या इस रोटी की भी कोई जाति होगी

फिर ख्याल आता नहीं

रोटी तो एक समान सबकी भूख मिटाती है


कभी सोचती हूँ ..

क्या इस हवा का भी कोई धर्म होगा

फिर ख्याल आता नहीं

हवा तो बिन फर्क किये सबकी सांसों में समाती है


कभी सोचती हूँ ..

क्या इस पानी का भी कोई मज़हब होगा

फिर ख्याल आता नहीं

पानी तो बिन भेदभाव किये सबकी प्यास बुझाता है


कभी सोचती हूँ ..

क्या ये उम्मीद भी किसी देवता को पूजती होगी

फिर ख्याल आता नहीं

उम्मीद तो सबके मन में एक- सी आशा की लौ जलाती है


बस फिर एक प्रश्न मन में उठता है

जब जीवन की ये बुनयादी आवश्यकतायें

इन्सान की जाती धर्म की परवाह नहीं करती

तो खुद इन्सान ही इन्सान को क्यूँ बांटता है

क्यूँ अलग अलग मज़हब से एक दुसरे को पहचानता है?

©vibespositiveonly

Thursday, 29 June 2017

Being Thankful To Nature



Being Thankful To Nature


I am thankful to
Divine sunrises
The morning sun
Chirping Birds
soothing, gentle breeze
Dazzling days
Bright Summers
Pleasant Rains
Colorful, vibrant Rainbows
Velvety Green lands
big and shady Trees
Pretty, blossoming Flowers
Blue roses and sweet-smelling lilies
Lavish, dense Mountains
Flawless lakes and rivers
deep blue oceans
Colossal Mountains
Slopy,golden hills
Picture-perfect, white  Snow
Unquie Snowflake
Ravering Waterfalls
Splendid Sunsets
harsh Winters
Cold  and Chilling Nights
Romantic Evening Moon
Twinkling Stars
Vivid Sky
Grand Flora and Fauna

I am thankful to each and every object on this Earth..
I am thankful to Mother Earth..
I am thankful to the Blissful Nature..

Extending My Gratitude Circle to Nature without which Life on this Earth would not have been possible..









"पिता"


इस मतलब की दुनिया में
एक निस्वार्थी मैंने देखा है
खुद कड़ी धुप में तपकर
ठंडी छाया देने वाला मैंने देखा है
तमाम जिमेदारियों को हँसकर निभाता
एक मज़बूत काँधे वाला मैंने देखा है
सबका पेट भरने के लिए
खुद पेट काट कर सोने वाला मैंने देखा है
रात बे रात अपनी नींद उड़ाकर
नरम आलिंगन में चैन से सुलाने वाला मैंने देखा है
अपनी सब इच्छाएं स्वाहा करके
सबके नखरे नाजों से उठाने वाला मैंने देखा है
हर परेशानी संकट से अकेले ही भिड़ जाता
ऐसा रक्षक फौलादी सीने वाला मैंने देखा है
जीवन की सच्चाई से रूबरू करता
सही गलत का भेद बतलाने वाला मैंने देखा है
निराशा की घड़ी हो,चाहे  हार द्वारे खड़ी हो
पीठ थपथपा कर होंसला बढ़ाने वाला मैंने देखा है
कामयाबी के समय में,जीत के पलों में
माथा चूमकर शाबाशी देने वाला मैंने देखा है
सबकी झोली में उपहार हज़ार भरकर
खुद की जेबें खाली करने वाला मैंने देखा है
बच्चों का उज्जवल भविष्य सवारने के लिए
दिन रात एकतार एड़ी घिसने वाला मैंने देखा है
दुःख की पीड़ा अपनी आँखों में समेटकर
सबके आंसू पोछने वाला मैंने देखा है
अपनों की एक ख़ुशी के लिए ,इंसा तो इंसा
खुदा से भी लड़ जाने वाला मैंने देखा है
जज्बातों के सैलाब को पी कर
एकांत में सिसक कर रोने वाला मैंने देखा है
जिसकी अपनी कोई हँसी की वजह नहीं
सबकी  ख़ुशी में यूँही खिलखिलाने वाला मैंने देखा है
उसका अपना कुछ नहीं,सबकी चाहत में
हरदम खुद को लुटाने वाला मैंने देखा है
नकली इंसानों की इस दुनिया में
एक रूहानी फ़रिश्ता मैंने देखा है
हाँ , 'पिता' के रूप में
मैंने साक्षात् 'इश्वर' को देखा है ...





Thursday, 11 May 2017

ये रिश्ते कुछ खास है...




सुबह के सूरज के लिये 
रात का यूँ ढल जाना भी अच्छा है 

रिश्तों पर काली घटा छाने से पहले 
तुम्हारा कस कर बरश जाना भी अच्छा है 

अपनो के बीच प्यार के फूल खिलाये रखने के लिये 
काँटों पर चल जाना भी अच्छा है 

अहम  की दीवारें उठ खड़ी होने से पहले 
तुम्हारा झुक जाना  भी अच्छा है 

अपनो की एक मूस्कान के लिये 
थोड़ा दर्द सह जाना भी अच्छा है 

दिलों को शोर गुल से बचाने के लिये 
तुम्हारा चुप हो जाना भी अच्छा है 

रिश्तों में मधुरता बनाये रखने के लिये 
दो चार कङवे घूट पी जाना भी अच्छा है 

अनमोल जज़्बातों के इस बाजार मे
तुम्हारा बिक जाना भी अच्छा है

किसी अपने को जीतने के लिये 
खुद हार जाना भी अच्छा है 

ये रिश्ते है
शतरंज की कोई बाज़ी नही 
यहाँ पलट वार से चूक जाना भी अच्छा है 

प्यार के इस खेल मे 
हर बार हार कर जीत जाना ही अच्छा है .....

©vibespositiveonly

Tuesday, 9 May 2017

उड़ने दो, ना बांधो




उड़ने दो, ना बांधो
पैरों में मेरे और बेड़ियाँ ना डालो
खोखले समाज की इन बेमानी ज़ंजीरो में
बन्दिशो में और इन झूठी शानो की लकीरो में
मुझको तुम और अब ना जकड़ो
उड़ने दो, ना बांधो ।

ख्वाबों के जहाँ में
ज़रा पंख फैलाने दो
ख्वाहिशों के आसमाँ में
एक चक्कर तो लगा आने दो
छोटी सोच की कोठरी में
अब और ना मुझको कैद करो
उड़ने दो ना बांधो ।

लड़की हूँ कोई कठपुतली नही
ये मेरी साँसें नक्ली नही
मेरी जीवन की डोर को अब और ना कसो
मेरा भविष्य, मेरी सीमाएँ तुम तय ना करो
चलना कैसे है और कितनी दूर जाना है
ये अब तुमको ना मुझे बताना है
उड़ने दो, ना बांधो


क्यों आंख दिखाते हो
मुँह जो खोलूँ तो भौऐं चढ़ाते हो
हर बार मेरी आवाज़ दबाते हो
और चुप रहने की नसीहत दे जाते हो

अब और ना चुप रहूँगी
यूँ खामोशी से सब कुछ ना सँहूगी
अब तुम ना मुझको रोक पाओगे
बेबक निडर मै अपनी उड़ान भरुँगी
और तुम बस देखते रह जाओगे ।।



I and You Together We







I and You
Together We


Let's live a new life,
begin a new journey
holding hands in hands
walking along
miles away..

I and You
Together We

You'll  be the moon of my sky
glowing and sparkling the night
and I'll be your sun
that shines the day bright
I and You
Together We

I will be lost and drown in your eyes
deep as ocean and
you will find your shore
in my delicate arms
embraced and wrapped into
each other we will find
our world
I and You
Together We


My smile will be your happiness
and your pain will be
my trauma
cuddling these fragile
emotions we will earn solace
in each other's lap
I and You
Together We

You will share and double
my moments of joy
I will taste your
cup of pain and stick around
in both loss and gain
I and You
Together We

You will hug be tight
while I do the
pillow fight we will
be there through
thick and thin sailing
through ups and downs
I and You
Together We

My naive soul
found dwelling in your
heart and
You breathe in me now
to stay in love forever
I and You
Together We